Tuesday 1 March 2016

भगवान विष्णु के आज्ञा स प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि के रचना कएलन्हि तहन ओ संसार में देखलन्हि जे चारू तरफ सुनसान निर्जने देखाई दै ऐछ।उदासी सँ पुरा वातावरण उजार जकाँ लगैया।जेना ब्रह्माण्ड मे वाणी नै छै।ई देखक ब्रह्माजी उदासी आ मलीनता के दूर करै लेल अपन कमंडल सँ जल लके छिटलनि।ओय जलकण के पैड़ते वृक्षों सँ एगो शक्ति उत्पन्न भेल जे दूनु हाथ स वीणा बजा रहल छेलिह तथा दुगो हाथ में क्रमशः पुस्तक आ माला धारण केने छेलिह । ब्रह्माजी अहि देवी सँ वीणा बजाक् संसार के मूकता आ उदासी दूर करै के लेल कहलन्हि ।तहन ओ देवी वीणा के मधुर-नाद सँ सब जीव के वाणी प्रदान केलन्हि, ताहिसँ ओय देवी के सरस्वती कहल गेल।याह देवी विद्या, बुद्धि के दिय वाली ऐछ। अहिसँ बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती के पूजा केल जाएत अछि ।दोसर शब्द में बसंत पंचमी के दोसरा नाम सरस्वती पूजा अछि।सरस्वती चिदानन्दमयी, अखिल भुवन कारण स्वरूपा आ जगदात्मिका अछि। हिनके महासरस्वती, नील सरस्वती कहल जाइतअछि।मां सरस्वती ब्रह्माजी के पुत्री छथिन्ह ।रंग इनका चंद्रमा के समान धवल, कंद पुष्प के समान उज्जवल अछि।चारू हाथ में ई वीणा, पुस्तक माला लेने ऐछ आ एगो हाथ वर मुद्रा में ऐछ।ई श्वेता पद्मासना छी। शिव, ब्रह्मा, विष्णु व देवराज इंद्र सेहो हिनकर सदैव स्तुति करैत अछि । हंस हिनकर वाहन अछि।जिनका पर हिनकर कृपा भ जाय ओकरा विद्वान बनैत देर नै लगैतछैक ।कालीदास के सबसे बड़ उदाहरण सबके सामने ऐछ।संगीत आ अन्य ललित कला के अधिष्ठात्री देवी सरस्वती स्वयं छथिन्ह ।शुद्धता, पवित्रता, मनोयोग पूर्वक निर्मल मन सँ उपासना केपूर्ण फल माता अवश्य प्रदान करथिहिन ।जातक विद्या, बुद्धि आ नाना प्रकारक कला में सिद्ध सफल होइत अछि आ हुनकर सब अभिलाषा पूर्ण होइत अछि ।ओना त लोक पूछैत ऐछ जे बसंत पंचमी के दिन कि करबाक चाहि।बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से मां सरस्वती के पूजा होइतअछि , परंतु अहिके संगे भगवान विष्णु के पूजा के विधान सेहो छै।जय मां सरस्वती....सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरुपिणि ।विद्यारंम्भं करिष्यमि, सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।समस्त मिथिला वासी केवसंत पंचमी (सरस्वती पूजनोत्सव)के अशेष शुभकामना संग हार्दिक बधाई !

भगवान विष्णु के आज्ञा स प्रजापति ब्रह्माजी सृष्टि के रचना कएलन्हि तहन ओ संसार में देखलन्हि जे चारू तरफ सुनसान निर्जने देखाई दै ऐछ।उदासी सँ पुरा वातावरण उजार जकाँ लगैया।जेना ब्रह्माण्ड मे वाणी नै छै।ई देखक ब्रह्माजी उदासी आ मलीनता के दूर करै लेल अपन कमंडल सँ जल लके छिटलनि।ओय जलकण के पैड़ते वृक्षों सँ एगो शक्ति उत्पन्न भेल जे दूनु हाथ स वीणा बजा रहल छेलिह तथा दुगो हाथ में क्रमशः पुस्तक आ माला धारण केने छेलिह । ब्रह्माजी अहि देवी सँ वीणा बजाक् संसार के मूकता आ उदासी दूर करै के लेल कहलन्हि ।तहन ओ देवी वीणा के मधुर-नाद सँ सब जीव के वाणी प्रदान केलन्हि, ताहिसँ ओय देवी के सरस्वती कहल गेल।याह देवी विद्या, बुद्धि के दिय वाली ऐछ। अहिसँ बसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती के पूजा केल जाएत अछि ।दोसर शब्द में बसंत पंचमी के दोसरा नाम सरस्वती पूजा अछि।सरस्वती चिदानन्दमयी, अखिल भुवन कारण स्वरूपा आ जगदात्मिका अछि। हिनके महासरस्वती, नील सरस्वती कहल जाइतअछि।मां सरस्वती ब्रह्माजी के पुत्री छथिन्ह ।रंग इनका चंद्रमा के समान धवल, कंद पुष्प के समान उज्जवल अछि।चारू हाथ में ई वीणा, पुस्तक माला लेने ऐछ आ एगो हाथ वर मुद्रा में ऐछ।ई श्वेता पद्मासना छी। शिव, ब्रह्मा, विष्णु व देवराज इंद्र सेहो हिनकर सदैव स्तुति करैत अछि । हंस हिनकर वाहन अछि।जिनका पर हिनकर कृपा भ जाय ओकरा विद्वान बनैत देर नै लगैतछैक ।कालीदास के सबसे बड़ उदाहरण सबके सामने ऐछ।संगीत आ अन्य ललित कला के अधिष्ठात्री देवी सरस्वती स्वयं छथिन्ह ।शुद्धता, पवित्रता, मनोयोग पूर्वक निर्मल मन सँ उपासना केपूर्ण फल माता अवश्य प्रदान करथिहिन ।जातक विद्या, बुद्धि आ नाना प्रकारक कला में सिद्ध सफल होइत अछि आ हुनकर सब अभिलाषा पूर्ण होइत अछि ।ओना त लोक पूछैत ऐछ जे बसंत पंचमी के दिन कि करबाक चाहि।बसंत पंचमी के दिन विशेष रूप से मां सरस्वती के पूजा होइतअछि , परंतु अहिके संगे भगवान विष्णु के पूजा के विधान सेहो छै।जय मां सरस्वती....सरस्वती नमस्तुभ्यं, वरदे कामरुपिणि ।विद्यारंम्भं करिष्यमि, सिद्धिर्भवतु मे सदा ।।समस्त मिथिला वासी केवसंत पंचमी (सरस्वती पूजनोत्सव)के अशेष शुभकामना संग हार्दिक बधाई !

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